तुम अजीब हू....

मान का क्या मान तो कही नही लगता अब मेरा और लोग बोलता है तुम अजीब हो भाई कभी जाने का कोसिस तो किया करो की लोक क्यों बदल जाते है जो सिर्फ बोलने को साथ हो न उन्हें अजीब लगाने लगे होंगे वरना समझने बाले तो साथ अभी भी है ... ज़िंदगी भर इंतज़ार करो किसी का फिर पता चले की वो तो कभी अपना था ही नही तब होता है तकलीफ जो सिर्फ खुद पे बिता जाता है किसी को बतोगए तो सिर्फ निकलेगी हँसी... जीना अगर अकेले है तो मै बस अपना परिवार के साथ ही खुश है आब नही है मुझको आस किसी से की कोई आयेगा मुझ से मिलने...... सायद इसलिए अजीब हो.

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